ग्रामीण एवं कृषक परिवारों के समक्ष आय और रोज़गार दोनों ही
अधिकाधिक चिंतन के विषय है. बढ़ती जनसंख्या के साथ उपलब्ध संसाधनों की कमी होती जा
रही है और प्रत्येक पीढ़ी के युवक और युवतियों के रोज़गार का संघर्ष कठिन से कठिनतम
होता जा रहा है । अतः अर्थोपार्जन की इस चुनौती का विकल्प खोजना आवश्यक हो गया है । हालाँकि, बढ़ती
जनसंख्या बाज़ार में उत्पाद और सेवाओं की माँग में भी वृद्धि कर रहा है जिससे उद्यमिता
के क्षेत्र में रोज़गार के सृजन तथा नवीन अवसरों की सम्भावनायें बढ़ी हैं । परंतु
यहाँ कौशल की असाधरण कमी है.यदि इस कमी को दूर कर दिया जाये तो खाद्य प्रसंस्करण एक ऐसा क्षेत्र है जिसे प्रारम्भ कर/ अपनाकर कृषक एवं ग्रामीण परिवार अपनी आय को दोगुना या
उससे भी ज़्यादा कर सकते हैं ।
धरती पर प्राणी की उत्पत्ति
के साथ ही भोजन जुटाने का कार्य आरम्भ हुआ । मनुष्य के सामाजिक उत्थान के गौरवशाली इतिहास के साथ भोजन के विभिन्न रसों और
स्वाद का इतिहास भी जुड़ा हुआ है । कृषि विज्ञान के विकास के साथ ही कृषोपज प्रसंस्करण की विद्या भी विकसित हुई । भारत में
अनाज को धोने, सुखाने, साफ करने एवं पीसने की एवं फल तथा सब्ज़ी को नमक, शक्कर, तेल व सिरके से
परिरक्षित करने की प्रक्रिया काफी पुरानी रही है जो क्षेत्र, ऋतु और जल्वायु के
साथ अत्यधिक परिवर्तित होती है जिसे एक कहावत ” पग पग रोटी, डग डग नीर” के माध्यम से समझा जा सकता है .
भारत छह ऋतुओं का देश है और यहाँ वर्ष भर कृषि उपज (अनाज, दलहन, तिलहन, साग,
सब्ज़ी, फल और दूध, मेवे और मसाले इत्यादि) उत्पादित होते हैं । अतः भारत में कृषि
उत्पाद प्रसंस्करण उद्योग की असीम संभावनायें मौजूद हैं । भारत में प्रतिवर्ष लगभग
275 मि. टन अनाज, 130 मि. टन फल एवं सब्ज़ी
तथा 165 मि.टन दूध का उत्पादन हो रहा है । भारत, दूध, जूट, दलहन, का विश्व का सबसे
बड़ा उत्पादक राष्ट्र है साथ ही भारत पूरे विश्व में गौवंश संख्या में दूसरे स्थान
पर है । भारत, विश्व का चावल, गेहूँ,
गन्ना, कपास, मुँहफली, फल और सब्ज़ी का दूसरा सबसे बड़ा उत्पादक राष्ट्र है । भारत
में विश्व के कुल फल उत्पादन का 10.9 % तथा कुल
सब्ज़ी का 8.6% भाग उत्पादित होता है । इस भरपूर प्राकृतिक संपदा के बावजूद कुल अनाज का
10 प्रतिशत एवं फल तथा सब्ज़ियों का 40-45 प्रतिशत भाग विभिन्न कारणों से नष्ट हो जाता है । एक ओर जहाँ कुल फल एवं सब्ज़ी
उत्पादन का 30 प्रतिशत भाग, थाइलैण्ड में, 70 प्रतिशत भाग ब्राजील में, 78 प्रतिशत भाग फिलीपीन्स
में, तथा 80 प्रतिशत भाग मलेशिया में प्रसंस्कृत किया जाता
है वहीं भारत में कुल फल एवं सब्ज़ी का 2 प्रतिशत से भी कम
भाग प्रसंस्कृत किया जा रहा है ।
भारत में, सन 2024 तक खाद्य
प्रसंस्करण के क्षेत्र में 33 अरब अमरीकी डॉलर के निवेश का लक्ष्य है जिससे लगभग
90 लाख भारतीयों को सीधे तौर पर रोज़गार मिलने की संभावना है. रोजगार के इन नये अवसरों का अधिकांश लाभ छोटे
शहरों, कस्बों एवं गाँवों में रह रहे लोगों के लिये को
मिलेगा । हमारे कृषकों, महिला उद्यमियों एवं ग्रामीण युवाओं
के लिये यह सुखद आश्चर्य का विषय है कि भारतीय प्रसंस्कृत उत्पादों की माँग अब
राष्ट्रीय एवं अंतर्राष्ट्रीय बाज़ार में बढ़ रही है । इसीलिये वर्ष 2024 तक किसानों की आय दोगुनी करने का लक्ष्य
प्रसंसकरण के माध्यम से सम्भावित हो सकता है ।
प्रसंस्कृत उत्पादों की बढ़ती माँग के
कारण:
1. अमरीकी कृषि विभाग (यू.एस.डी.ए.) ने भोजन में शाकाहार को सर्वोच्च
प्राथमिकता प्रदान की है । जिसका विश्व व्यापी प्रभाव हुआ है एवं संसार भर में
लोगों का रूझान शाकाहार की ओर बढ़ा है । भारतीय मसाले एवं खाद्य पदार्थ सबकी पहली
पसंद बन रहे हैं । पश्चिम के कई देशों में लगभग 6 महीने बर्फ जमी रहती है वहीं आस्ट्रेलिया एवं अरब देशों में रेगिस्तानी
इलाके हैं । जिससे फल एवं सब्ज़ी की उपलब्धता सीमित रहती है । ऐसे देशों को भारत
में बने प्रसंस्कृत खाद्य उत्पाद का विक्रय कर विदेशी मुद्रा का अर्जन किया जा
सकता है ।
2. घरेलू स्तर पर प्रसंस्करण में आँगन और छत की महती भूमिका है किंतु शहरों
में बढ़ती आबादी के कारण बहुमंज़िली भवनों एवं फ्लैटों का चलन बढ़ा है जिनमें इन
स्थलों का अभाव है । अतः शहरों में घरेलू स्तर पर खाद्य प्रसंस्करण करना कठिन होता
जा रहा है ।
3. सामाजिक व्यवस्था में परिवर्तन हो रहा है । संयुक्त परिवारों का
स्थान एकांकी परिवार ले रहे हैं । इस परिवर्तन के साथ गृहिणी की भूमिका भी बदली है
। परिवार के प्रति बढ़ी हुई जिम्मेदारी के कारण एवं अधिक व्यस्त होने के कारण
गृहिणियाँ निजी रूप से खाद्य प्रसंस्करण करने की अपेक्षा बाज़ार से प्रसंस्कृत
उत्पाद क्रय करना सरल महसूस करती हैं ।
4. बढ़ते उपभोक्तावाद के साथ लोगों की आवश्यक्ता भी बढ़ी है । महिलाओं
के नौकरीपेशा होने से घर पर खाद्य पदार्थों का प्रसंस्करण संभव नहीं है परन्तु
आमदनी अधिक होने से क्रय शक्ति बढ़ी है । अतः इस प्रकार के परिवार अपनी आवश्यकता की
सामग्री बाज़ार से जुटाते हैं जिनमें प्रसंस्कृत उत्पाद भी शामिल हैं ।
5. भारत में वर्तमान समय में अन्य वर्गों की तुलना में मध्यम वर्ग
बढ़ा है जिनके पास क्रय शक्ति है । साथ ही प्रचार-प्रसार के ऐसे माध्यम (रेडियो, टेलीविजन, इंटरनेट, सोशल मीडिया, पत्र एवं पत्रिकायें आदि) भी बढ़े हैं जिनमें आकर्षक
विज्ञापनों द्वारा प्रसंस्कृत पदार्थों को प्रोत्साहित किया जाता है ।
6. एक आदर्श प्रसंस्कृत भोज्य पदार्थ जहाँ गुणवत्ता में उपभोक्ता के
विश्वास के अनुरूप होता है, वहीं विशेष प्रकार के फल एवं सब्ज़ियाँ, वर्ष भर, समानदर पर उपभोक्ता हेतु उपलब्ध होती हैं
।
कृषि उपज के प्रसंस्करण एवं परिरक्षण का लाभ:
कृषि उपज के प्रसंस्करण एवं
परिरक्षण के निम्नलिखित लाभ होते हैं:
1.
आवक अधिक
होने की स्थिति में कृषोपज की खपत पूरी तरह से नहीं हो पाती है जिस कारण इसका अवमूल्यन
हो जाता है तथा यह बिना उपयोग के व्यर्थ भी हो जाते हैं । ऐसी परिस्थिति में कृषि
उपज के प्रसंस्करण एवं परिरक्षण के द्वारा इन्हें खराब होने से बचाया जा सकता है
तथा लम्बे समय तक खाने योग्य अवस्था (शैल्फ लाईफ) में रखा जा सकता है ।
2.
शैल्फ लाईफ
वृद्धि के कारण कृषि उपज विशेष के उत्पादन
के मौसम के अतिरिक्त भी कृषोपज उपलब्ध हो जाता है ।
3.
प्रसंस्करण
एवं परिरक्षण तकनीक से कृषोपज के मूल स्वरूप में परिवर्तन कर नये आकर्षक, स्वादिष्ट
और मूल्यसंवर्धित उत्पाद बनाये जा सकते हैं, जिनकी बाज़ार में अच्छी माँग होती है
तथा इन उत्पाद के विक्रय से अतिरिक्त लाभ कमाया जा सकता है ।
कृषोपज मूल्यसंवर्धन एवं
विधि:
कृषोपज के
प्रसंस्करण एवं परिरक्षण के पश्चात कच्ची सामग्री की तुलना में तैयार उत्पाद का
बाज़ार मूल्य अधिक प्राप्त होता है जिसे मूल्य संवर्धन कहते हैं । कृषि उपज का
मूल्य संवर्धन निम्नानुसार विधि से किया जा सकता है:
1. स्थान परिवर्तन द्वारा: उत्पादन स्थल से बाज़ार में उपलब्ध करवाने की प्रक्रिया में स्थान
परिवर्तन के कारण कृषोपज के मूल्य में वृद्धि होती है.
2. स्वरूप परिवर्तन: प्रसंस्करण
द्वारा कृषोपज के स्वरूप में परिवर्तन कर तैयार उत्पाद हेतु बाज़ार से अधिक मूल्य
मिलता है. जैसे गेहूँ की बाली से गेहूँ प्राप्त करना अथवा गेहूँ की सफाई,
ग्रेडिंग, धुलाई, सुखाई और पिसाई कर आटा बनाना तथा उपयोग कि लिये तैयार करना ।
कृषि कार्य की श्रेणीयाँ एवं द्वितीयक कृषि के रूप में खाद्य
प्रसंस्करण
कृषि कार्य को दो श्रेणियाँ में विभक्त किया गया है जो निम्नानुसार हैं:
1. प्राथमिक कृषि: फसलोत्पादन
का कार्य, प्राथमिक कृषि के तौर पर श्रेणीबद्ध किया जाता है ।
2. द्वितीयक कृषि: फसल
की कटाई अथवा तुड़ाई के उपरांत आहारीय
उपयोग की तैयारी तक के कार्य, प्रसंस्करण तथा परिरक्षण को द्वितीयक कृषि के रूप में श्रेणीबद्ध किया गया
है ।
खाद्य प्रसंस्करण के प्रकार :
अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर लुई
पाश्चर द्वारा भोजन पर सूक्ष्म जीवों के प्रभाव के अध्ययन व खोजों ने प्रसंस्करण
के क्षेत्र में भोज्य पदार्थों की डिब्बा बंदी कर परिरक्षित करने की तकनीक ने क्राँति
ला दी और प्रसंस्कृत उत्पादों का व्यवसायिक दौर प्रारंभ हुआ ।
द्वितीयक कृषि के अन्तर्गत
कृषोपज प्रसंस्करण एवं परिरक्षण कार्य को स्थान दिया गया है । खाद्य प्रसंस्करण दो
श्रेणियों में विभक्त किया जाता है जो कि निम्नानुसार हैं:
1.
प्राथमिक खाद्य
प्रसंस्करण:
कृषोपज का प्रसंस्करण कर
रसोई में पकाने के लिये तैयार उत्पाद (रैडी टू यूज़) के निर्माण की प्रक्रिया को
प्राथमिक प्रसंस्करण कहते हैं जैसे गेहूँ से आटा, मैदा, सूजी अथवा सेंवई तैयार
करना, चने से दाल अथवा बेसन तैयार करना, खड़े मसाले को कूट कर कुटा मसाला तैयार
करना, दूध से पनीर तैयार करना और सोयाबीन से टोफू (सोया पनीर) तैयार करना इत्यादि ।
2.
द्वितीयक खाद्य
प्रसंस्करण:
कृषोपज का प्रसंस्करण कर
सीधे सेवन (रैडी टु ईट) के लिये उत्पाद तैयार करने की प्रक्रिया को द्वितीयक
प्रसंस्करण कहते हैं । जैसे, फल एवं सब्ज़ी से तैयार अचार, आलू से तैयार चिप्स, आम
से तैयार अमावट (आम पापड़) अथवा जैम, अमरूद, कैथा अथवा करौंदे से तैयार जैली, आँवले
से तैयार मुरब्बा, कैंडी और सुपारी इत्यादि ।
कृषि उत्पाद प्रसंस्करण इकाई के प्रकार:
ग्रामीण परिवेश में निम्नलिखित कृषि उत्पाद प्रसंस्करण इकाईयों में
से किसी भी एक का चुनाव कर अपना उद्यम प्रारम्भ किया जा सकता है :
1. शस्य फसलों का प्रसंस्करण इकाई: शस्य फसलों की ग्रेडिंग
इकाई, शस्य फसलों और मोटे अनाज को छान, बीन, धो और सुखा कर अनाज तैयार करने की
इकाई, गेहूँ से सूजी, आटा, मैदा, सेंवई, दलिया, सत्तू, नूडल्स,
पोंगा पंडित इत्यादि तैयार करने की इकाई, धान से चावल तैयार करने की
इकाई ।
2. दलहन के प्रसंस्करण इकाई: दलहन की ग्रेडिंग इकाई, दलहन फसलों से दाल, दालों जैसे अरहर, मूँग,उड़द से पापड़, चना दाल
से बेसन, बेसन से बूँदी, मूँग दाल की बड़ी इत्यादि तैयार कर पैकिंग की इकाई लगाना।
सोयाबीन से दूध, टोफू (सोया पनीर) सोया युक्त बड़ी, आटा
इत्यादि तैयार करने की इकाई, साथ दलहन और तिलहन के छिलकों से पशु आहार (खली) तैयार
करने की इकाई ।
3. तिलहन फसलों के प्रसंस्करण की इकाई: तिलहन की ग्रेडिंग इकाई, तिलहन फसल जैसे सरसों, तिल और मुँहफली
इत्यादि से तेल निकालने की इकाई, साथ तिलहन के छिलकों से पशु आहार (खली) तैयार
करने की इकाई ।
4. उद्यानिकी फसलों की प्रसंस्करण इकाई:उद्यानिकी फसलों की ग्रेडिंग, धुलाई, सुखाई की इकाई, पपीते से चैरी
एवं पेपेन, आम से जैम, शर्बत, अचार इत्यादि तैयार करने, अमरूद. करौंदे एवं से कैथे की जैली तैयार करने, संतरे
से मार्मलेड, शर्बत इत्यादि तैयार करने नींबू से शर्बत और
अचार इत्यादि तैयार करने, आँवले से खड़ा मुरब्बा, किसा मुरब्बा, लड्डू, रस, कैंडी
और सुपारी तैयार करने, आलू की चिप्स तैयार करने, टमाटर से सॉस, केचप, प्योरी,
रस इत्यादि तैयार करना, सुपाड़ी काटने एवं
मसाला युक्त सुपारी बनाना, मसालों को पीस कर पैक करने
सब्जि़यों से अचार तैयार करना अथवा सुखा कर पैक करने की इकाई इत्यादि ।
5. दूध की प्रसंस्करण इकाई: दूध को प्रसंस्कृत कर खोवा, पनीर, चीज, मक्खन, घी, दही, श्रीखंड, मीठा दूध, टोन्ड दूध, डबल
टोन्ड, मट्ठा, दूध मट्ठा एवं आईस्क्रीम
और मिठाईयाँ, इत्यादि तैयार करने की इकाई ।
6. कन्फैक्शनरी उद्योग: बच्चों
के पसंद की चूसने वाली गोलियाँ, टॉफियाँ एवं चाकलेट बनाने की इकाई ।
7. जल, शीतल पेय
एवं अल्कोहल युक्त पेय पदार्थ की प्रसंस्करण इकाई: बोतलबंद जल, शीतल पेय
एवं अल्कोहलयुक्त पेय पदार्थ बनाने हेतु इकाई ।
8. बेकरी उद्योग: केक, पाव रोटी, ब्रेड, पेस्ट्री एवं क्रीम रोल इत्यादि बनाने की बेकरी की इकाई ।
9. माँसाहार के प्रसंस्करण की इकाई: अंडे, मीट, मटन,
एवं मछली के प्रसंस्करण कर खाने योग्य उत्पाद बनाने की इकाई ।
मध्य प्रदेश हेतु
विशेष इकाईयाँ:
मध्य
प्रदेश में प्राप्त होने वाली कृषि उपज के आधार पर निम्नलिखित लाभकारी इकाईयाँ स्थापित
की जा सकती हैं:
1. गेहूँ से
सूजी, मैदा, आटा, दलिया, सेंवईयाँ, मिठाईयाँ तैयार करने हेतु इकाई ।
2. चना एवं गेहूँ
से सत्तू तैयार करने की इकाई ।
3. चने से
बेसन तैयार करने की ईकाई ।
4. बेसन से
बूँदी और बूँदी के लड़्डू तैयार करने की इकाई ।
5.बेसन अथवा अनाज की सहायता से लड़्डू और नमकीन तैयार करने की इकाई ।
6. चना भूनना
एवं भुने चने पैक करने की इकाई ।
7. मुँगफली
भूनकर या तल कर पैक करने की इकाई ।
8. मक्के से पॉपकॉर्न
बनाने एवं पैक करने की इकाई ।
9. दलहन से
पापड़ और बड़ी बनाने की इकाई ।
10. बिस्कुट, टॉफी, केक, बनाने की इकाई ।
11. फिंगर एवं फ्रायम तल कर पैक करने की इकाई ।
12. सोयाबीन से दूध, टोफू
(पनीर) सोयाबीन पौष्टिक आटा, सोयायुक्त पौष्टिक दलिया
पौष्टिक सत्तू एवं सोयाबीन की पौष्टिक बड़ी ।
13. नींबू से अचार, शर्बत
एवं रस इत्यादि तैयार करने की इकाई ।
14.फल और सब्ज़ियों को सुखा कर पैक करने की इकाई ।
15. आलू के चिप्स बनाकर पैक करने की इकाई ।
16. सब्ज़ियों के अचार बनाने की इकाई ।
17. बेर से बिरचुन (पिसा बेर), अचार इत्यादि तैयार करने की इकाई ।
18. संतरे का शर्बत एवं मार्मलेड तैयार करने की इकाई ।
19. दूध से पनीर, खोवा,
आईस्क्रीम, घी, दही,
मट्ठा, मिठाईयाँ इत्यादि तैयार करने की इकाई ।
20. आम से अचार, अमचूर, शर्बत, और अमावट बनाने की इकाई ।
21. अमरूद से जैली और टॉफी बनाने की इकाई ।
22.आँवले से खड़ा मुरब्बा, किसा हुआ मुरब्बा, लड़्डू, कैंडी, खड़ी
सुपारी, किसी सुपारी, रस और अचार तैयार करने की इकाई ।
23. मुरमुरे के लड़्डू बनाने की इकाई, इत्यादि ।
24. मसाला पिसाई की इकाई ।
25. मशरूम प्रसंसकरण की इकाई।
26. प्याज़ के पेस्ट को तैयार करने की इकाई।
27. हल्दी प्रसंसकण की इकाई ।
28. ऐसी अन्य कई इकाईयाँ कुटीर , लघु या बड़े उद्योग के रूप में विकसित की जा सकती हैं ।
खाद्य प्रसंस्करण इकाई स्थापित करने हेतु आवश्यक बिंदु :
1. सदैव स्थानीय तौर पर उपलब्ध कृषि उपज को ही प्रसंस्कृत करें जो कि
सस्ते मिलेंगे और प्रसंस्कृत उत्पाद के निर्माण की लागत कम होगी । कम दाम पर
उपलब्ध होने के कारण इसका विक्रय मूल्य अन्य स्थानों से बनकर आने वाले उत्पाद की
तुलन में कम रखना सम्भव हो पायेगा। यदि कच्चे माल को किसी दूरस्थ स्थान से
प्रसंस्करण इकाई तक लाकर प्रसंस्करण करेंगे तो तैयार उत्पाद के मूल्य में किराया
भाड़ा भी जुड़ जायेगा तथा उत्पाद का मूल्य बढ़ जायेगा और ऐसे उत्पाद को बाज़ार में
विक्रय करना कठिन हो जायेगा ।
2. तैयार उत्पाद की गुणवत्ता सीधे तौर पर कच्चे माल की गुणवत्ता पर
निर्भर करती है । कच्चे माल की गुणवत्ता अति उत्तम तथा एक समान होनी चाहिये ताकि
तैयार उत्पाद की गुणवत्ता भी अति उत्तम तथा एक समान हो । सदैव समान तथा श्रेष्ठ गुणवत्ता के उत्पाद को ग्राहक पसन्द करते हैं
तथा इनका विक्रय करना सरल होता है । कभी भी तैयार उत्पाद की गुणवत्ता से समझौता ना
करें ताकि लंबे समय तक आप बाजार में अपना स्थान बनाये रख सकें ।
3. तैयार उत्पाद का विक्रय एक चुनौती है । इसका विक्रय करने के लिए पहले
बाज़ार में स्थापित विक्रय चैनल का उपयोग करें । इस चैनल में डीलर , सब डीलर और रिटेलर होते हैं जो कि उत्पादक से निश्चित लाभ
लेकर बाज़ार में स्थापित विक्रय चैनल के माध्यम से उत्पाद का विक्रय करते हैं । हालाँकि
उत्पाद को सीधे ग्राहक को विक्रय किया जा सकता है । ऐसा करने से उत्पादक को अधिक
मुनाफा होगा किंतु श्रम बहुत अधिक लगेगा । आजकल उत्पाद को ऑनलाइन बाज़ार से माध्यम
से भी विक्रय करने की सुविधा है । कई साईट यह सेवा
उपलब्ध करा रही हैं ।
4. चूँकि उत्पाद का विक्रय एक चुनौतीपूर्ण कार्य है अतः उद्योग में एक
बार में बहुत अधिक पैसा लगाने के पहले से स्थापित इकाइयों के माध्यम से, कच्चा माल
देकर पूर्व निश्चित गुणवत्ता का उत्पाद तैयार करवाया जा सकता है, इस तैयार उत्पाद
को अपनी कम्पनी स्थापित कर, लाईसैंस लेकर,
अपने ब्रांड के माध्यम से विक्रय किया जा सकता है । ऐसा करने से इकाई स्थापित करने
के व्यय से बचा जा सकता है तथा पूरा ध्यान उत्पाद के विक्रय पर दिया जा सकता है और
कम लागत में व्यापार प्रारम्भ किया जा सकता है । एक बार जब बाजार में ब्रांड
स्थापित हो जाये तथा ग्राहकों के द्वारा उत्पाद पसन्द किया जाने लगे तत्पश्चात अपनी
उत्पादक इकाई स्थापित करें ।
5. उत्पाद के मूल्य निर्धारण हेतु बाज़ार का सर्वेक्षण करें । बाजार
में कई प्रकार की छोटे आकार की, मध्यम आकार की और बड़े आकार की खुदरा दुकानें होती
हैं, साथ ही मॉल भी होते हैं । जिस उत्पाद का निर्माण कर आप व्यापार करना चाहते
हैं, इन दुकानों में जाकर उन उत्पादों की गुणवत्ता तथा उनका विक्रय मूल्य एवं
दुकानदार का लाभांश, उत्पाद का लेबल, उत्पाद की पैकिंग, इन उत्पाद के ग्राहक का
सामजिक और आर्थिक स्तर इत्यादि की जानकारी लिखकर प्राप्त करें । साथ में यह भी पता
करें कि इस उत्पाद का डीलर मूल्य, सब डीलर मूल्य एवं स्कीम अथवा छूट क्या है तथा
इनका लाभांश कितना है । यह पता करें कि
बाज़ार में किस खाद्य उत्पाद की माँग सबसे अधिक है और वर्ष
के किस माह में माँग सबसे अधिक है । यह भी
पता करें कि क्या यह उत्पाद खुले बाज़ार में भी मिलता है, यदि हाँ तो खुले उत्पाद
का मूल्य कितना है, इसकी गुणवत्ता कैसी है
और इससे प्राप्त होने वाला लाभांश कितना है । ध्यान दें, इस सर्वेक्षण के पश्चात
आप के द्वारा निर्मित उत्पाद की गुणवत्ता को बाज़ार में उपलब्ध उत्पाद की गुणवत्ता
से श्रेष्ठ रखना है तथा आपके द्वारा तैयार उत्पाद के मूल्य को बाज़ार में तैयार
उत्पाद के मूल्य से कम रखना है । यदि आप अपना उत्पाद बाज़ार के विक्रय चेन के
माध्यम से विक्रय करना चाहते हैं तो डीलर, सब डीलर और रीटेलर (खुदरा व्यापारी) का
लाभांश भी अधिक देना होगा । विक्रय मूल्य से लागत का मूल्य घटा कर जो राशि आपके
पास बचेगी वह लाभ होगा । इस लाभ का कुछ भाग आप अपने लिये रखेंगे और बाकी भाग डीलर,
सबडीलर और रीटेलर को दिया जायेगा ।
6. प्रसंस्करण उद्योग स्थापित करते समय इस बात का ध्यान रखें कि आपके
पास ऐसी योजना हो कि वर्ष भर आपको कोई ना कोई ऐसा कच्चा उत्पाद मिलता रहे जिसका
प्रसंस्करण किया जा सके और मूल्य संवर्धित उत्पाद बनाया जा सके ताकि वर्ष भर आपका
व्यापार चलता रहे तथा आप और आपके कर्मचारी को वर्ष भर आय होती रहे ।
7. ग्राहक के स्तर, स्तर के अनुसार पसन्द और नापसन्द के बारे में पता
करें । यदि ग्राहक उच्च वर्ग का है तो उसके पास क्रय शक्ति अधिक होगी एवं गुणवत्ता
की माँग भी उसकी अधिक होगी । यदि ग्राहक मध्यमवर्गीय है तो वह उच्च गुणवत्ता की माँग
तो करेगा किंतु उत्पाद को सस्ते में क्रय करना चाहेगा । अगर आर्थिक रूप से कमज़ोर
वर्ग का ग्राहक है तो उसे गुणवत्ता की चाह कम होगी किंतु उत्पाद का मूल्य उसके लिए
ज्यादा महत्वपूर्ण होगा । इस बात का ध्यान रखना है कि आपको तीनों श्रेणियों के ग्राहकों
के लिये उत्पाद बनायें । उत्पाद की सर्वाधिक माँग, आर्थिक रूप से कमजोर वर्ग की ओर
से आती है क्योंकि इनकी जनसंख्या भी अधिक है । इन बातों को ध्यान में रखकर ही आप
अपनी योजना का निर्माण करें ।
8. उत्पाद निर्माण करने के पहले उत्पाद निर्माण की पूरी प्रोजेक्ट
रिपोर्ट बनाने हेतु कृषि विज्ञान केंद्र से संपर्क करें प्रत्येक कृषि विज्ञान
केंद्र में खाद्य वैज्ञानिक पदस्थ हैं जो कि इस विषय में आपको सहायता पहुँचायेंगे ।
साथ ही तकनीकी प्रशिक्षण भी आप कृषि विज्ञान केंद्रों से ले सकते हैं ।
9. तैयार उत्पाद की पैकेजिंग,
लेबलिंग और लाइसेंसिंग भी बहुत ही महत्वपूर्ण तथ्य हैं । इन्हें भी आप ध्यानपूर्वक
पूरा करें । इसके पूर्व की आप खाद्य प्रसंस्करण इकाई प्रारम्भ करें, अपनी कम्पनी का पंजीयन करवायें, फसाई
(एफ.एस.एस.ए.आई.) का लाइसेंस ज़िले के चीफ मैडिकल ऑफिसर के कार्यालय में आवेदन दे
कर प्राप्त करें और जी.एस.टी नम्बर प्राप्त करें, अपनी कम्पनी का खाता बैंक में
खुलवायें । यदि आप अपना व्यापार प्रारंभ करने के लिए ऋण चाहते हैं तो जिले के लीड
बैंक से आप संपर्क करें । साथ ही उद्यमिता विकास केंद्र, जिला रोजगार केंद्र भी
आपको मदद कर सकता है उद्यानिकी एवं खाद्य प्रसंस्करण विभाग भी इस विषय में आपको
सहायता पहुँचा सकता है । अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर व्यापार करने के लिये आप अपीडा
(ए.पी.ई.डी.ए) नामक संस्था की सहायता प्राप्त करें ।
10.खाद्य प्रसंस्करण इकाई स्थापित करने के पूर्व ही लिखित में इस बात
का आँकलन करें कि जो उत्पाद आप बनाना चाहते हैं, उस उत्पाद की बाज़ार में माँग
कितनी है, तथा बाज़ार की माँग और आपकी क्षमता एवं उपलब्ध संसाधन को देखेते हुये आप
कितनी मात्रा में उत्पाद का निर्माण करना चाहते हैं, जिसका आप विक्रय सरलता से कर
पायें । पूर्व में बताये गये बाज़ार के सर्वेक्षण से प्राप्त जानकारी इस आँकलन में
आपकी सहायता करेगी । इस आँकलन के आधार पर ही आप निर्णय लें कि आप खाद्य प्रसंस्करण
इकाई किस स्तर की लगाना चाहते हैं, जैसे
रसोई से प्रारंभ होने वाला इकाई, कुटीर स्तरीय इकाई, मध्यम स्तर की इकाई अथवा बड़ी इकाई
। इकाई के स्तर के साथ-साथ उत्पादन की मात्रा भी बढ़ती जायेगी । उत्पादन की मात्रा
तभी बढ़ायें जबकि आपको यह भरोसा हो की बाज़ार में आपके द्वारा निर्मित उत्पाद की पूरी खपत हो जायेगी । प्रति इकाई
होने वाले लाभ का ध्यान रखते हुये इस बात का भी आप आँकलन करें कि आपको कितनी इकाई प्रतिमाह निर्मित करनी होगी
ताकि यह इकाई आपको अपेक्षित लाभ दे पाये क्योंकि यदि इकाई से मुनाफा कम होगा तो
फिर आप इस इकाई को लंबे समय तक चलाना नहीं चाहेंगे ।
11. उत्पादन इकाई को छोटे स्तर से भी प्रारम्भ कर सकते हैं जिससे
आर्थिक नुकसान के खतरे को कम किया जा सके । उत्पाद के विज्ञापन हेतु सोशल साईट,
जैसे वॉट्स ऐप, टैलीग्राम, सिग्नल, ट्विटर, फेसबुक इत्यादि का उपयोग करें ।
व्यकिगत रूप से भी मित्रों, रिश्तेदारों और सम्बन्धियों से भी चर्चा कर, उत्पाद
चखा कर विज्ञापन कर सकते हैं.
12.उत्पाद को और कमपनी के नाम
को बाज़ार में ब्रांड के अतौर पर स्थापित कीजीये । अन्य उत्पादों के बीच, बाज़ार और
उपभोक्ताओं के बीच, कम्पनी और उत्पाद का नाम और उसकी विशिष्टता को स्थापित कीजीये ।
इस हेतु कम्पनी को उत्पाद की गुणवत्ता को श्रेष्ठ रखना होगा तथा मूल्य को कम से कम
रखना होगा । कम्पनी को स्वंय को अनुशासित रखना होगा तथा सेवायें नियमित रखनी होंगी
। उत्पाद सम्बन्धी और कंपनी की सेवाओं सम्बन्धी,उपभोक्ताओं के अनुभवों को सुखद
रखना होअगा तथा समय समय पर इस बारे में उनका फीड बैक लेना होगा, साथ में बाज़ार का
सर्वेक्षण भी करते रखना होगा ताकि प्रतिस्पर्धी कंपनी और उत्पादों पर नज़र रखी जा
सके ।
परिरक्षण हेतु कृषि उपज का चुनाव:
परिरक्षण हेतु कृषि उपज,
साफ-स्वच्छ, सुगन्धित, दृढ़, परिपक्व,
तथा दिखने में सुन्दर, आकर्षक और समान गुणवत्ता के होने चाहिये ।
फलों का ताजा होना आवश्यक है । कटे-फटे,
खरोंच वाले, सिकुड़े, अपरिपक्व
एवं बासी फल नहीं लेना चाहिये । यदि निर्माण विधि में फलों को छीलना एवं काटना आवश्यक
हो तो छीलने व काटने के तुरन्त बाद परिरक्षण की संपूर्ण क्रिया एक बार में ही पूरी
कर लें । छीले व कटे हुए फल जल्दी खराब होते हैं साथ ही साथ उनके रंग एवं स्वाद
में भी अंतर आ जाता है ।
परिरक्षण कब करें:
बाज़ार में जब कृषि उपज की
आवक अधिक हो तथा कच्चे माल, तब परिरक्षण
करना चाहिये, ताकि कम से कम खर्च में प्रसंस्कृत उत्पाद तयार किया जा सके । वर्षा के
समय, जब वातावरण में नमी अधिक रहती है, परिरक्षण के लिये
उपयुक्त नहीं है, क्योंकि जब वातावरण में नमी अधिक होती है तब सूक्ष्मजीव अधिक
सक्रिय रहते हैं जो कि कृषि उपज को खराब कर सकते हैं ।
परिरक्षण की इकाई कहाँ स्थापित करें:
कृषि उपज प्रसंस्करण एवं परिरक्षण की इकाई ऐसे स्थान पर स्थापित करना उपयुक्त होता है जहाँ कृषि उपज प्रचुर मात्रा में उपलब्ध हो तकि कृषि उपज सस्ते मूल्य में उपलब्ध हो सके. ट्रांसपोर्ट का खर्च भी कम से कम लगे और प्रसंस्करण उपरांत का मूल्य कम रखा जा सके ।
प्रसंस्करण इकाईयों का आकार / प्रकार:
कृषि उपज प्रसंस्करण की इकाई निम्न
अनुसार हो सकती हैं:
1. बड़ी खाद्य प्रसंस्करण इकाई (लार्ज स्केल फूड इंडस्ट्री): इस प्रकार की इकाई अधिकांशत: आधुनिक यंत्रों तथा कुशल के उपयोग से संचालित होती है
जिससे अधिकाधिक मात्रा में कृषि उपज प्रंसंस्कृत किया जाता है और अधिकाधिक मात्रा
में, प्रसंस्कृत उप्ताद तैयार किये जाते हैं. यह एक बड़ा व्यापार है जिसमें
प्रारम्भिक निवेश भी बड़ा होता है और लाभ भी अधिक कमाय जा सकता है । ऐसी इकाई को प्रारम्भ करने के लिये कुशलतापूर्व योजना
बनाना आना चाहिये तथा ऐसी ही इकाई संचालित करने का पूर्व अनुभव होना अच्छा होगा ।
2. कुटीर उद्योग: यह एक
मंझौले आकार का खाद्य प्रसंस्करण उद्योग होता है जिसमें यंत्र और मानव श्रम तथा
कुशलता का लगभग बराबर उपयोग होता है । बड़ी इकाई की तुलना में इस इकाई में कम मात्रा में कम मात्रा में कृषि
उपज का प्रसंकरण किया जाता है एवं प्रसंस्कृत उत्पाद भी कम मात्रा में तैयार होता है जिसके फलस्वरूप
लाभ भी कम होता है, किंतु ऐसे उद्योग में निवेश भी कम होता है अत: नुकसान का खतरा
भी कम होता है ।
3. गृह उद्योग: जैसा कि
नाम से स्पष्ट है कि इस उद्योग को घर से ही प्रारम्भ किया जा सकता है । इस प्रकार
की इकाई में यंत्रों का उपयोग कम से कम होता है बल्कि खाद्य प्रसंस्करण विषय पर
प्रशिक्षण प्राप्त कर एवं घरेलू बर्तनों
तथा उपकरणों के उपयोग से ही कम खर्च से प्रारम्भ की जा सकती है । चूँकि यह के छोटी
इकाई है अत: इस इकाई में बहुत कम मात्रा में कृषि उपज का प्रसंस्करण तथा परिरक्षण
किया जा सकता है जिससे कम मात्रा में ही परिरक्षित एवं प्रसंस्कृत उत्पाद तैयार होता है और लाभ भी सीमित ही होता
है किंतु नुकसान का खतरा भी बाकी दोनों प्रकार के उद्योग से कम होता है ।
फल एवं सब्ज़ी के परिरक्षण की मूलभूत
बातें:
कृषि उपज प्रसंस्करण एवं
परिरक्षण से जुड़े कुछ सवाल अनायास ही आ खड़े होते हैं । मसलन फल एवं सब्ज़ी, अनाज की अपेक्षा शीघ्र क्यों खराब होते हैं तथा
इन्हें खराब होने से क्या रोका जा सकता है । अथवा इनको खराब होने से रोकने के लिये
क्या उपाय अपनाने होंगे आदि ।
इसके लिये हमें पहले कृषि
उपज की संरचना को समझना होगा । साधारणतः
फल एवं सब्ज़ियों में जल की मात्रा बहुत अधिक होती है । यही जल सूक्ष्म जीवों को
पनपने का अवसर देता है एवं फलों के अंदर चलने वाली रासायनिक अभिक्रियाओं के लिये
माध्यम का कार्य करता है । इन्हीं कारणों से फल एवं सब्ज़ियों की गुणवत्ता कटाई के पश्चात
निरंतर घटती जाती है । खटास, मिठास,
सड़न, गलन, सिकुड़न आदि
की समस्यायें आती हैं । परिरक्षण द्वारा हम फलों की उत्तम अवस्था वाले स्वाद एवं
सरंचना को संरक्षित कर सकते हैं ।
कृषि उत्पाद प्रसंसकरण से युवाओं को रोज़गार
संबंधी लाभ:
खाद्य प्रसंस्करण से न
केवल ग्रामीण परिवारों की आय में वृद्धि की सम्भावना है बल्कि ग्रामीण युवक एवं
युवतियों को अपना रोज़गार प्रारम्भ करने का भी अवसर मिलेगा:
1. विशेष
प्रकार के कृषि उत्पाद की बाज़ार में आवक अधिक होने के कारण किसान को आर्थिक हानि
का सामना करना पड़ता है ।ऐसी स्थिति में कृषि उत्पाद का प्रसंस्करण एवं परिरक्षण
कर उत्पाद को आवक कम होने तक सुरक्षित रख कर ऐसे समय बाज़ार में उपलब्ध कराया जा
सकता है जब कृषि उत्पाद विशेष की आवक कम होने से माँग अधिक हो जिससे कृषक एवं
प्रसंस्करण से जुड़े युवा आर्थिक लाभ कमा सकें। इस प्रकार से,जहाँ एक ओर प्रसंस्करण, आर्थिक
हानि से तो बचाता ही है वहीं दूसरी ओर अधिक लाभ भी दे सकता है ।
2. बढ़ती
आबादी के कारण प्रति व्यक्ति कृषि योग्य भूमि कम होती जा रही है एवं ग्रामीण युवक
बेरोजगारी से जूझ रहें है तथा शहरों की ओर पलायन कर रहे हैं । किन्तु शहरों में भी
ग्रामीण युवा संतुष्ट नहीं है । यदि ग्राम्य स्तर पर ही कृषि उत्पाद प्रसंस्करण की
इकाईयाँ लगाई जायेें तो बेरोजगारी की समस्या से काफी हद तक निपटा जा सकता है । यदि
यह इकाईयाँ सहकारिता के सिद्धान्त पर चलें तो यह और भी अच्छा होगा। इसका जीवंत
उदाहरण लिज्जत पापड़ उद्योग है जिसे एक महिला ने आरंभ किया था आज हजारों लाखों
महिलायें इस उद्योग से जुड़ी हैं एवं लाभ कमा रही हैं। लिज्जत पापड़ राष्ट्रीय
स्तर पर प्रसिद्धि पा रहा है ।
3. केन्द्रीय
सरकार के द्वारा खाद्य प्रसंस्करण इकाईयाँ आरंभ करने के इच्छुक व्यक्तियों हेतु इस
वर्ष विशेष योजना चलाई जा रही है । इसके अतिरिक्त देश भर के प्रदेशों में जिले
स्तर पर कृषि विज्ञान केन्द्र, कृषकों
के लाभ हेतु खोले गये हैं जहाँ ग्रामीण किशोर, किशोरियाँ,
युवक एवं युवतियां जाकर खाद्य इकाईयाँ स्थापित करने हेतु उत्पाद
संबंधित तकनीकी सहायता तथा प्रशिक्षण प्राप्त कर सकते हैं । आज समूचा विश्व,
एक बाज़ार के रूप में उपलब्ध है । हमारे कृषक भाई, युवा वर्ग, मातायें एवं बहने खाद्य उत्पादों का
प्रसंस्करण कर विदेशों को निर्यात कर विदेशी मुद्रा कमा सकते हैं ।